श्रीवास्तव
ने बताया, 'अब मार्केट में
प्राइस डिस्कवरी पारदर्शी तरीके से हो रही
है। पहले किसानों को
फसल की सही कीमत
शायद ही कभी मिल
पाती थी। एमसीएक्स के
जरिये किसानों को एफिशिएंट प्राइस
डिस्कवरी का प्लेटफॉर्म मिल
गया है।' 2004-05 में मेंथा ऑयल
की ग्लोबल डिमांड चीन से भारत
की तरफ शिफ्ट हो
गई। उसी वक्त एमसीएक्स
ने मेंथा ऑयल कॉन्ट्रैक्ट लॉन्च
किया था।
स्पाइस बोर्ड ऑफ इंडिया के
मुताबिक, मेंथा और अलायड प्रॉडक्ट्स
का एक्सपोर्ट वित्त वर्ष 2016 में 21,150 टन का रहा,
जिसकी कीमत 2,577.59 करोड़ रुपये थी। यह देश
से होने वाले कुल
मसालों के निर्यात का
15.87 पर्सेंट था। मेंथा की
बुआई आमतौर पर जनवरी-मार्च
के बीच होती है
और फसल मई के
बाद काटी जाती है।
हालांकि, पीक सप्लाई का
सीजन जून-जुलाई में
होता है। एमसीएक्स पर
जून और जुलाई के
कॉन्ट्रैक्ट्स ट्रेडिंग के लिए जनवरी
और फरवरी से ही अवेलेबल
होते हैं। इससे किसानों
को फसल की कटाई
के वक्त क्या कीमत
रहेगी, इसका अंदाजा पहले
से हो जाता है।
मिंट ग्रोअर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के
प्रेसिडेंट टेकराम शर्मा ने बताया, 'मेंथा
ऑयल फ्यूचर्स से किसानों को
फसल की बुआई करनी
है या नहीं, इस
बारे में मदद मिलती
है। हमारे कई मेंबर्स ने
इस साल जनवरूी में
एमसीएक्स पर जून कॉन्ट्रैक्ट
की कीमत देखकर मेंथा
की बुआई का फैसला
किया। उस वक्त वहां
इसकी कीमत 1,000 रुपये किलो थी, जबकि
पिछले साल जनवरी में
यही कॉन्ट्रैक्ट 900 रुपये किलो पर था।'
शर्मा ने बताया कि
किसानों को एक्सचेंज की
कीमत अट्रैक्टिव लगी और इस
वजह से उन्होंने इसकी
खेती में दिलचस्पी दिखाई।
एसोसिएशन अभी यूपी में
बाराबंकी, अंबेडकरनगर, बहराइच, हरदोई, अमेठी, सीतापुर जैसे इलाकों में
बड़ी संख्या में किसानों के
साथ मिलकर काम कर रहा
है। उसके किसान मेंबर्स
की संख्या बढ़कर 1,000 से अधिक हो
गई है।
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Source: MarketTimesTv
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