उन्होंने
विभाग के अधिकारियों से
इस प्रकार के आयात के
संबंध में सतर्क रहने
के लिए कहा है।
यह घटनाक्रम ऐसे समय सामने
आया है कि जब
काली मिर्च उत्पादक सस्ते आयात और गुणवत्ता
को लेकर चिंता जता
रहे हैं। उद्योग ने
सरकार से न्यूनतम आयात
शुल्क निर्धारित करने की मांग
की है। यूनाइटेड प्लांटर्स
एसोसिएशन ऑफ सदर्न इंडिया
(यूपीएएसआई) की कार्यसमिति के
सदस्य और काली मिर्च
के प्रमुख उत्पादक निशांत आर गुर्जर ने
कहा कि एक ओर
जहां उत्पादन स्थिर है, वहीं दूसरी
ओर देश में मांग
बढ़ रही है।
भारत में काली मिर्च
की घरेलू मांग में सालाना
करीब चार प्रतिशत का
इजाफा हो रहा है।
मौजूदा मांग 60,000 टन प्रति वर्ष
होने का अनुमान है।
इस मौके का लाभ
उठाते हुए वियतनाम से
श्रीलंका के जरिये सस्ती
काली मिर्च आ रही है
जिसके साथ भारत ने
मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) कर रखा है।
इस तरह, व्यापारियों द्वारा
खरीदी गई सस्ती वियतनामी
काली मिर्च बाजार में भारतीय मिर्च
बताकर बेची जा रही
है।
गुर्जर ने कहा कि
हमने सरकार के सामने अपनी
बात रखी है। भारतीय
काली मिर्च अपनी गुणवत्ता के
लिए जानी जाती है।
वियतनामी मिर्च के साथ भारतीय
मिर्च का ऐसा मिश्रण
हमारे यहां नहीं है।
इससे भारतीय मिर्च की अपनी पहचान
गुम हो जाएगी। जानकारी
के अनुसार सामान्य रूप से काली
मिर्च पर 70 प्रतिशत का आयात शुल्क
लगता है। आसियान समझौते
के तहत वियतनाम से
आयातित काली मिर्च पर
54 प्रतिशत का शुल्क लगता
है, जबकि साफ्टा के
अंतर्गत श्रीलंका से आने वाली
काली मिर्च पर सिर्फ आठ
प्रतिशत का ही शुल्क
लगता है। यही वजह
है कि व्यापारियों का
एक वर्ग वियतनाम की
काली मिर्च श्रीलंका के रास्ते भारत
ला रहा है।
भारत के काली मिर्च
उत्पादकों ने वियतनाम से
आने वाली काली मिर्च
पर प्रति टन 6,000 डॉलर का न्यूनतम
आयात शुल्क लगाने की केंद्र सरकार
से गुहार लगाई है। उद्योग
के विशेषज्ञों का कहना है
कि वियतनाम ने 1.8 से 2 लाख टन
फसल का रिकॉर्ड बनाया
है। वह विश्व के
कुल उत्पादन का एक-तिहाई
उत्पादन करता है। भारत
के करीब 9,000 डॉलर प्रति टन
के मुकाबले उसके दाम 5,000-5,200 डॉलर
प्रति टन के आस-पास हैं।
Source: MarketTimesTv
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